मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय
31 जुलाई, 1880, ये दिन बनारस के इतिहास मे किसी ऐतिहासिक पल से कम
नहीं
था। जन्म हुआ था हिन्दी साहित्य एक महान लेखक ‘मुंशी प्रेमचन्द्र’ जी का, जिनकी रचनाओ ने आधुनिक हिन्दी साहित्य को पूरी तरीके से बदल
कर रख दिया।
प्रेमचन्द्र
जी का बचपन बहुत ही संघर्षमय रहा। महज 8 वर्ष की उम्र मे माता का देहांत और
सोतेली माँ का उनको पूर्ण रूप से नहीं अपनाना, उन्हे माँ-बाप
के प्यार से हमेशा दूर रखा। जिससे वो ज़्यादातर अकेले मे रहकर किताबे पढ़ने लगे और
ऐसे मे किताबो के प्रति उनकी रुचि काफी बढ़ गई। उन्होने हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू की कई किताबे पढ़ी।
वे जब हाई स्कूल मे थे तब ज्यादा बीमार होने के
कारण second division से पास हुए। पैसो की तंगी के कारण
उनको अपनी पढाई बीच मे ही रोकनी पड़ी। बाद मे उन्होने बनारस के ही एक वकील के बेटे को पढ़ाने
की नौकरी कर ली। और इसके बाद एक सरकारी
स्कूल मे असिस्टेंट की नौकरी करते हुए उन्होने अपना पहला लघु उपन्यास ‘असरार-ए-मबिद’ लिखा, जिसे
हिन्दी मे ‘व्यवस्थान रहस्य’
कहा जाता है। ये लघु उपन्यास बनारस के एक उर्दू साप्ताहिक अखबार ‘आवाजे खल्क’ मे प्रकासित
हुई। इस उपन्यास को लिखते समय उन्होने अपना नाम नाबाब राय रखा था, जिसे 1919 ई॰ मे बदल कर उन्होने प्रेमचन्द्र कर दीया।
1905 ई॰ से वो भारत
की राजनीति से काफी प्रभावित होने लगे और उसका रंग उनके किताबों मे भी दिखने लगा ।
उन्होने अपने एक लेख मे ‘बलगंगाधर तिलक’ के प्रयाशों की सराहना भी की । उन्होने अपनी एक कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ के माध्यम से लोगो को आजादी के
लिए जागरूक करने की कोशिस किया। इसके
अलावा उन्होने कहानियो की एक किताब ‘सोजे वतन’ लिखी जो अंग्रेज़ो के नजर मे आ गई। जिससे पुलिश ने उनके यहा छापा मारा और
सोजे वतन की लगभग 500 प्रतीया जला डाली।
इसके बाद 1919
ई॰ मे प्रेमचन्द्र जी का लिखा उपन्यास
‘सेवा सदन’ प्रकासित हुआ जिसे लोगो ने बहुत पसंद किया, ये किताब पहले कलकता मे हिन्दी मे फिर लाहौर मे उर्दू मे प्रकासित हुई।
इस
दरमियान 39 साल की उम्र मे प्रेमचन्द्र अपनी स्नातक की पढ़ाई के लिए
इलाहाबाद आ गए और इलाहाबाद यूनिवरसिटि से उन्होने बी.ए॰ की डिग्री हासिल की।
देश मे चल
रहे असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होनों सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और
फिल्मों मे कहानिया लिखने के लिए बॉम्बे चले गए वहा उन्होंने एक फिल्म प्रॉडक्शन कंपनी मे फिल्म 'मजदूर' के लिए की स्क्रिप्ट भी लिखा , लेकिन बॉम्बे का commercial माहौल उन्हे पसंद नहीं आया और वापस इलहबाद लौट गए।
इसके बाद
वे कई सारी कहानिया, लेख, नाटक, और उपन्यास लिखे, वे ज़्यादातर सामाज की वास्तविक परिस्थितियो पे अपनी कहानिया लिखते थे। गोदान, गबन, कफन, वरदान, सेवसदन आदि...उनकी प्रमुख रचनाए है। लेखकी के
प्रति उनके लगाव को उनके इस कथन से जाना जा सकता है......
“मै एक मजदूर हूँ जिस दिन मै कुछ लिख न लूँ
उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं है”
साहित्य
मे उनके योगदान के कारण उन्हे 'उपन्यास सम्राट' भी कहा जाता है। लेकिन 8अक्टुबर,1936 ई॰ को लंबी
बीमारी के बाद उनका निधन हो गया ! पर उनकी रचनाए आज भी हम सबके दिलो मे उन्हे
जिंदा बनाए हुए है।
उनकी
प्रमुख रचनाए है-
उपन्यास- सेवसदन, प्रेमाश्रम,
रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला आदि
कहानिया- पूस
की रात, ईदगाह, पंच परमेश्वर, कफन, बड़े भाई
साहब आदि..
नाटक- संग्राम, कर्बला, प्रेम
की बेदी।
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